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Meena Mallavarapu

Abstract

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Meena Mallavarapu

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एक शिथिल मुस्कान

एक शिथिल मुस्कान

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प्रियतम, यह कैसी विह्वलता है

यह कैसा व्यवधान

जो दूर किए देती है हम दोनों को

यह कैसा अनुमान ?


फेरे हुए हो यह दृष्टि मुझ से

एक शिथिल मुस्कान

कुछ कहते-कहते रुक जाती है

यह कैसा अनुमान ?


यह कब भूली मैं

परिवर्तन संसृति का आधार

फिर भी अपने बंधन में देखे मैंने

स्थायित्व के आसार

चाहे मुझ से छिन जाए


हर साथी हर याद

नहीं शिकायत होगी मुझको

नहीं करूंगी फ़रियाद

धुंधले पड़ गए चेहरे सारे

 लेकिन चेहरा तुम्हारा


हर पल नज़र के आगे

कभी पड़ा न धुंधला

टूटे रिश्ते जुड़ न पाएं

मनाइए सौ बार

टूटे जो एक बार


अहंकार कर देगा वार

 स्व को छोटा कर

 भूलोगे जीवन की मुस्कान

 इसीलिए, कहना मत कुछ

 बना रहे यही व्यवधान


जीत हार की लगे न बाज़ी

क्या जाने कब मेरी चाह

ले आए तुम्हें फिर मेरे पास

सह लूंगी तब तक यह व्यवधान


कहो नहीं कुछ भी अभी

स्व को करो नही छोटा

टूटे रिश्ते से

भला लगे यह अनुमान


प्रियतम, यह कैसी विह्वलता है

यह कैसा व्यवधान

यह कैसी शिथिल मुस्कान

यह कैसा अनुमान ?


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