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Shweta Mishra

Abstract

3.6  

Shweta Mishra

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भीड़तंत्र

भीड़तंत्र

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एक दम से रुक गई,साँस उसकी रोड पर,

"छोड़ दो न साहब" वो कहता रहा बेबसी से दोनों हाथ जोड़कर,


वर्चस्व वाली भीड़ आयी, मानवता को छोड़कर,

दे दिये लात घुसें, लाठियों को तोड़कर,


बह रही थी लहू की नदियां, उस जगमगाते मोड़ पर,

कोई न आया ताकने, व्यस्त थे सब लोकतंत्र का चादर ओढ़कर,


न जानें कितने तबरेज़, पहलु,रिंकू मारे गये,

फ़र्क़ बस इतना पड़ा मीडिया को कवरेज मिली


हफ्ते भर का जोश जगा बाद उसके

बुझ गयी मशालें चार भाषण बोलकर !


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