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शीला गहलावत सीरत

Abstract

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शीला गहलावत सीरत

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पैमाइश (रचना) चांद(मन की बात सुनकर, मन का खुश होना

पैमाइश (रचना) चांद(मन की बात सुनकर, मन का खुश होना

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चांद


यादों की गली में आता- जाता चांद

मन की बात सुनकर जब जाता चांद


दुःख - सुख में संग मेरे रहता चांद

घूम रहा है! अब मेरा तन्हा चांद


आधी रात- ढले चुपके से आना चांद

संग अपने चांदनी को ले जाना चांद


मुख पे आभा! हल्की मुस्कान के संग आता

हंसी की लहर, लहरा कर तब जाता चांद


तान- प्रेम की छेड़ - धीरे से मुझको बुलाता

राधा संग रास रचा खिड़की से गाता चांद


खुली सांसें, महकती खुशबू, मन आंगन में

रूह में मेरी भर कर आनन्द जाता चांद


हौले से जब भी करवट ली मैंने....... 

जाग उठा! नींद का कितना कच्चा चांद


आईना देख रोज जब भी संवरता है.. 

अक्स, पानी, पे ठहरता, बहक जाता चांद


इश्क़ पे न पड़े नज़र जब- तक..... 

हुस्न का रंग निखरता कब, भाता चांद


लम्हों में कैद कर दे जो सदियों को... 

ऐसा कोई तलबगार नहीं, ऐसा मेरा चांद


सुनो! छत से यूँ आंगन ना तुम उतरा करो

रात- बदन मेरा फिर जल जाता चांद.... 


संग मेरे आंख- मिचौली तुम खेलते हो

यूँ बादल में छुप- छुप कर सोता चांद


रात गुजरती जब - जब करवट लेती

मन बहलाया, मन मुस्का जाता चांद


बाहें फैलाकर जब मैं पुकारूँ उनको

कुछ पल बैठ संग मेरे, मन बहला जाता चांद



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