पैमाइश (रचना) अंकुरित से रिश्ते
पैमाइश (रचना) अंकुरित से रिश्ते
रिश्ते अंकुरित से होते हैं
कुछ जिंदा से भी रहते हैं
मुरझा जाते गलतफहमी में
यूँ बिखर अहंकार में जाते हैं
खुशियों का हर लम्हा तुम भी
आनन्द की घड़ियाँ जी लेते हैं
बिगड़ी बात संवर जाती है
महको, फनकार बहते ये हैं
बस इतनी सी हसरत दिल में
तेरे नाम की माला जपते हैं
पाने की कोशिश बहुत मगर
तू एक लकीर, हाथ नहीं मेरे है