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मन नींद कैद आंगन बदन तलबगार सदियों अच्छी कविता ईन संस्कार अहंकार धनवान निर्धन है कोई प्रकृति का रूप संवरता है सूक्ष्म जीव कोविड विविध व्याधियां चिंता है देती दौलत धूप-छांव सी

Hindi संवरता Poems