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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

न रहते सब दिन एक समान

न रहते सब दिन एक समान

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इस संसार में निर्धन है कोई,

और कोई है बहुत धनवान।

उलट-पलट रहता है चलता,

न रहते सब दिन एक समान।


छोटे बड़े सभी से मिलकर,

प्रकृति का रूप संवरता है।

कुछ सुख तो लघुता में निहित,

जिनको तो वृहत तरसता है।

सूक्ष्म जीव कोविड के आगे,

हो गया कितना बेबस इंसान।


इस संसार में निर्धन है कोई,

और कोई है बहुत धनवान।

उलट-पलट रहता है चलता,

न रहते सब दिन एक समान।


धनी व्यक्ति को धन-वर्धन की,

हरदम चिंता बहुत सताती है।

विविध व्याधियां चिंता है देती,

उसे नींद न चैन की आती है।


भय नहीं निर्धन को खोने का,

वह है सोता चैन से चादर तान।

इस संसार में निर्धन है कोई,

और कोई है बहुत धनवान।

उलट-पलट रहता है चलता,

न रहते सब दिन एक समान।


निर्धन में संस्कार जो मिलते ,

धनिकों में विरले मिलते हैं।

अहंकार धन संग आ ही जाता,

लक्ष्मी चंचलता सभी समझते हैं।


दौलत धूप-छांव सी आंख-मिचौनी,

फिर जाने हम क्यों करें अभिमान ?

इस संसार में निर्धन है कोई,

और कोई है बहुत धनवान।

उलट-पलट रहता है चलता,

न रहते सब दिन एक समान।


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