STORYMIRROR

Sudhir Srivastava

Abstract

4  

Sudhir Srivastava

Abstract

परमेश्वर

परमेश्वर

2 mins
278

ईश्वर कहें या परमेश्वर

बात बराबर है,

सृष्टि का सृजन, पालन और

विनाशकर्ता भी परमेश्वर है।

हमने परमेश्वर को नहीं देखा

पर परिकल्पना करते महसूस करते हैं,

मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघरों

गुरुद्वारों में भी उसी के वशीभूत हो

सब ही तो चक्कर लगाते हैं।

अपने अंदर बैठे उसी परमेश्वर को

हम देख नहीं पाते हैं,

सच कहें तो हम खुद

विश्वास तक नहीं करते हैं ।

एक ही परमेश्वर सवत्र विराजमान है,

मूर्तियों, चित्रों, मठों, मंदिरों में

गरीब, असहाय, लाचारों में

अमीर, गरीब, ऊंच नीच सब में।

पर यह भी विडंबना है 

कि हम भटकते रहते हैं,

बेबस बन परमेश्वर को ढूंढ़ते रहते हैं

अपने अंदर के परमेश्वर से 

हम मिलना कब चाहते हैं?

यह विडंबना ही है कि हम

जीवित प्राणियों में 

परमेश्वर भला कब ढूंढ़ते है।

शायद इसलिए कि हम 

अपने जैसे ईश्वर को 

महत्व नहीं देना चाहते हैं,

लाचार, बेबस, असहायों के अंदर

बैठे परमेश्वर में झांकना 

अपनी तौहीन समझते हैं।

सिर्फ पत्थर के परमपिता को ही

वास्तव में पूजना चाहते हैं,

क्योंकि हमें अपने में झांकने की

आदत जो नहीं है,

हमारे कर्म ,विचार चाहे जैसे हों

अपने अंदर का परमेश्वर जब

हमें कभी दिखता नहीं है,

तब असंख्य जीवों का परमेश्वर

भला कैसे दिखेगा?

हमें तो वही परमेश्वर दिखता है

जो सिर्फ हमारी चुपचाप सुनता हो

हमें नसीहत न देता हो,

हम कुछ भी करें, कैसे भी करें

परमेश्वर को क्या फर्क पड़ता है?

बस यहीं हम गुमराह हो जाते हैं

परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते हैं

और तब हम कोसते, 

परमेश्वर को दोष देते

उलाहना भी खूब देते हैं।

इसीलिए परमेश्वर हमारे भाव

बहुत अच्छे से समझते हैं,

तभी तो हम कुछ भी कहें, कुछ भी करें, 

सब चुपचाप सुन लेते हैं,

बस करते अपने मन की हैं,

परमेश्वर की आवाज भला

आखिर हम सुनते कब हैं।



ଏହି ବିଷୟବସ୍ତୁକୁ ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କରନ୍ତୁ
ଲଗ୍ ଇନ୍

Similar hindi poem from Abstract