ओ प्यारे मन
ओ प्यारे मन
ओ प्यारे मन
तू क्यो इतना चंचल है
क्यों इतना मस्त मलंग है
कभी तो गंभीर बन
अब बच्चा नहीं रहा हो गया बड़ा तू
छोटी छोटी बातों पर अब ना अधीर बन
पल में यहां पल में वहां करना छोड़ तू
रुक ठहर,विचार कर अच्छे बुरे में कर फर्क तू
सही गलत पहचान,
अपना पराया करना छोड़ तू।।
