खुद को संभाल रही
खुद को संभाल रही
थोड़ा थोड़ा करके खुद को संभाल रही
उजड़ी हुई ज़िन्दगी को फिर से संवार रही
बिखरे ख़्वाबों को एक एक कर समेट रही
मिट गए वजूद की एक नई पहचान बना रही
अपने दर्द पर खुशियों की एक नई चादर चढ़ा रही।।
थोड़ा थोड़ा करके खुद को संभाल रही
उजड़ी हुई ज़िन्दगी को फिर से संवार रही
बिखरे ख़्वाबों को एक एक कर समेट रही
मिट गए वजूद की एक नई पहचान बना रही
अपने दर्द पर खुशियों की एक नई चादर चढ़ा रही।।