और क्या चाहिये
और क्या चाहिये
हवा में सरसराहट हो
होंठों पे मुस्कराहट हो
बस ‘तेरे’ आने की आहट हो
और क्या चाहिये
मन प्रेम में मग्न हो
किसी ठौर न थकन हो
बस ‘तेरी’ ही लगन हो
और क्या चाहिये
दिल में ‘उसकी’ तस्वीर हो
इक सुंदर सी तहरीर हो
न ग़म हो न पीर हो
और क्या चाहिये
कर्मों में उजलापन हो
माया की न जकड़न हो
बस इक ‘दीवानापन’ हो
और क्या चाहिये
खुली आँखों का सपना हो
पराया न कोई,न अपना हो
कहीं दूर ये ‘मैं’पना हो
और क्या चाहिये
प्यार से व्यवहार हो
न जीत हो न हार हो
बस जीवन एक त्यौहार हो
और क्या चाहिये।