पीड़ा
पीड़ा
सदियों से अब तक,
अब से न जाने,
कब तक,
रहेगा जारी
वहशीपन
चीर हरण का,
विकृत मानसिकता का,
शोषण
अस्मिता का,
केन्द्र में फिर वो ही
नारी,
पढ़ी लिखी,अनपढ़
असुरक्षित बेचारी,
सुर्खियाँ
अख़बारों की,
तसवीरें
संचारों की,
बयानबाज़ी और
भुलावे,
बड़ी ज़ुबान,
खोखले दावे,
रोष मुज़ाहिरे
राजनीतिक बहसों
का दौर,
कुछ दिनों का
शोर,
पास होते
क़ानून और
धज्जियाँ उड़ाते
विकृत
मानसिकता के चोर,
कैसे प्रश्न,
कैसे उत्तर,
मानवता शर्मसार
जनता,
विभाजित,
नेत्रहीन,निरुत्तर
न आएगा
कोई कृष्ण,
उठा शस्त्र
रच दे
महाभारत का
नया रण !