प्यार है…….
प्यार है…….
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मन की उलझी गाँठें खोलो,
प्यार को अलविदा मत बोलो।
रिश्ता तो दिल के द्वार का है,
अंतर्मन के प्यार का है,
इसमें दूरियाँ कहाँ ?
मजबूरियाँ कहाँ?
मन को ज़रा यूँ भी टटोलो,
प्यार को अलविदा मत बोलो।
बिना शर्त का खेल है ये,
बिन मोल भाव का मेल है ये,
इसमें इंकार कहाँ ?
स्वीकार कहाँ ?
अपने दिल को दिल से तोलो,
प्यार को अलविदा मत बोलो।
अलविदा तो ठहराव है,
प्यार तो अनवरत बहाव है
इसमें ज्ञान कहाँ?
अज्ञान कहाँ?
ऐसे न यूँ डगमग डोलो,
प्यार को अलविदा मत बोलो।
ये तो “उसका” नूर है
उसके होने का सरूर है,
इसमें सवाल कहाँ?
जवाब कहाँ?
प्यार से बोलो और रस घोलो,
पर कभी अलविदा मत बोलो ॥
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