पुरवाई
पुरवाई
धून - है प्रीत जहाँकी रित सदा (पुरब पश्चिम)
जब जब पुरवाई आती है, तो याद वहांकी आती है
जहाँ भोर सुनहरी होती है और शाम सिंदूरी होती है
सातों समुंदर पारसे जब चिट्ठी कोई आती है
माथे से लगा लु मैं उसको भारतकी मिट्टी आई है
कैसे भूलाऊँ मैं उसको जो दिलमें समाई होती है
जहाँ भोर सुनहरी होती है और शाम सिंदूरी होती है।
