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Rashmi Nair

Abstract

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Rashmi Nair

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दफ्तरका गुलाम

दफ्तरका गुलाम

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मुलाजिममुलाजिम सरकार का

 बना गुलाम दफ्तर का

हर सुबह हाँफता हुआ

दौडता गाडी पकडने

न पहुँचे साढे नौ तो

मिलता लेट मस्टर

सुबहसे शामतक अक्सर

 बैठा रहता है कुर्सीमे धंसकर

बिताता है दिन कलम घिसकर

 मोटी-मोटी फाईलोमें अक्सर

खोया रहता है दिनभर

 फिरभी बोझ कामका

न होता कभी हल्का

कछुएकी चाल सी

होती है तरक्की बढती है तनखा

वह भी बस नामकी बढने को बढती है

चढती महंगाई है ,

हाय राम दुहाई है , दुहाई


 


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