दीया और मन
दीया और मन
निहारो मत जलते दीये को, शलभ की लाश तो देखो,
औरों को रोशनी देते हुए मर जाता है उसका इतिहास तो देखो।।
न कहता है किसी से कुछ चुप रह कर देता जलने का संदेश तो देखो,
तेल और बाती के साथ देता है उसके जीवन की तपन तो देखो।।
कहता है रिक्त हूं मैं फिर भी मेरी रोशनी में मुस्कराहट तो देखो,
औरों के जीवन में रोशनी भरता हूं मैं जरा मेरे अंदर का खालीपन तो देखो।।
मैं कैसे बनाया जाता हूं जरा कुम्हार के पास जाकर देखो,
मिट्टी, पानी और चाक से बनाया जाता हूं मेरा इतिहास तो देखो।।
दिया कहता है ए- इंसान तुम मुझमें मन दर्पण से ईश की सूरत तो देखो,
रोशनी के साथ भावनाएं सबल हो जाएगी मन में जलते हुए दिये को देखो।।
जिंदगी में दर्द की गहराइयों को नाप कर तुम देखो,
दुनिया की रोशनी के लिए जलते हुए हृदय में पलता हुआ विश्वास तो देखो।।
आंधी, तूफानों से मैं टकरा कर जलते हुए देता हूं दुनिया को प्रकाश तो देखो,
कितनी मतलबी है दुनिया, जलने के बाद मुझे फेंक देती है राहों में देखो।।
लोग रोंध कर चले जाते हैं बेरहमी से मेरे शरीर को देखो,
विजय लक्ष्मी कहती हैं एक दिन दिये की भांति मिट्टी में मिल जाना है देखो।।
आओ सब मिलकर खोते हुए संस्कारों की ज्योति जलाए देखो,
दीये की भांति जलते हुए संसार को रोशन कर जाएं देखो।
जय हिन्द जय भारत
