रिवाजों से हटकर
रिवाजों से हटकर
गुजरते समय की हर बात को घड़ी पुरानी कहे है,
बात नई हो या गीत नये हर घड़ी पुरानी कहे है।।
हवा जब चलती है तो किसी की कहानी कहे है,
मौसमों के बदलने की जुबानी कहे है।।
संग समुंद्र की लहरों से जुड़ा है फ़साना जमी का,
आसमां का रंग है नीला ये सारा जमाना कहे है।।
गली मुहल्ले से जब भी वो गुजरे है सबकी निगाहें उसको घूरती हैं,
बेटी जब किसी की जमाने में हुई सयानी कहे है।।
इस जमाने में नहीं है गुजारा सियासत के बिना अब,
ये हम ही नहीं कहते इस मुल्क की राजधानी कहे है।।
मुख जो खोला जरा सा तूने जमाने में गुनहगार हो जाएगा,
सच जो कहा तूने यहां तो हादसा हो जाएगा तेरे साथ सब कहें है।।
पर्दा जो उठ गया यहां पर मन में छुपा भेद खुल जाएगा,
माजरा हो जाएगा यहां पर तब तो सब सरे-बाजार कहे है।।
हम तो बने गुस्ताख दिल यहां किसी को जरा सी राय देकर,
धमकियां भी दे वो अगर हमको तो हो जाएगा मशवरा सब कहे हैं।।
बात जब भी चलती है संस्कृति और संस्कारों की यहां,
पुराने ख्यालात है इनके धज्जियां उड़ाई जाती है सब कहे हैं।।
कहते हैं माता-पिता के चरणों में बहती गंगा यमुना,
जिनको पाला मां बाप ने बड़ा किया समय नहीं है अब वो ऐसा कहे है।।
विजयलक्ष्मी कहती हैं खानदान की सब देते हैं दुहाई यहां,
अपनी तो भाषा भी अब बोलते नहीं है हमको शर्म आती है ऐसा कहे है।।
