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VIJAY LAXMI

Inspirational

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VIJAY LAXMI

Inspirational

जीवन और लाचारी

जीवन और लाचारी

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मैं हर रोज जिंदगी की राहों से गुजरती हूं,

कितनी जिंदगियों को भटकते हुए देखती हूं।।

मैंने सोचा कि जो छूट गया उसका क्यों मलाल करती हूं?,

जो मैंने हासिल किया है उसी से सवाल करती हूं।।

मन में सोचते हुए यादों के काफिलों के साथ दूर निकल जाती हूं,

कुछ पुरानी यादों की वो सुबह-शाम मन में गुनगुनाती हूं।।

खेल-खिलौने वाला बचपन छोड़िए रद्दी की ढेरी में किस्मत ढूंढ रही हूं,

नेक निगाहों के साथ मन में ताकत का संग रखती हूं,

वरना रोटी के आगे तो मैं हर रोज हरी दर्शन को हारते हुए देखती हूं।।

जज्बाती रिश्तों का देश है यह ऐसा मैं सुनती हूं,

फिर आए दिन क्यों मासूमियत को दो गज कपड़े में लिपटे देखती हूं।।

कभी सड़क के किनारे अखबार बेचती जिंदगी को देखती हूं,

उसकी मासूमियत भरी निगाहों में एक घर बनाने की तलाश देखती हूं।।

विजयलक्ष्मी कहती हैं देश तरक्की कर रहा है, फिर क्यों मासूमियत दो रोटी के लिए तन बेचते देखती हूं।।



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