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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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असफल शादी

असफल शादी

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एक असफल शादी में

फँसी हुई औरतें

अक्सर

झूठ बोल जाती हैं

बड़ी सफ़ाई से।

रिश्ते को न तोड़ने के लिए बनाती हैं

कभी बच्चों का बहाना

कभी बाबूजी के कमज़ोर दिल का

कभी माँ की ख़राब तबीयत का।

कभी पति के भविष्य में सुधर जाने

की उम्मीद का।

बहानों के इस आवरण के पीछे छुपकर

बड़ी सफ़ाई से

रिश्ते के सूखे पौधे पर

उड़ेल आती हैं

एक लोटा पानी

तब भी जब वो जानती हैं

कि जड़ से सूख चुके पौधे

फिर हरे नहीं हुआ करते।

घर से मकान बन चुकी

चारदीवारी को

अपने कमज़ोर कंधों पर

पूरे जतन से टिकाकर रखती हैं,

अपनी अधूरी इच्छाओं को

मायके से आए बक्से में छुपाकर

किसी अंधेरे कोने में रख देती हैं

और उसपर डाल देती हैं

झूठी मुस्कुराहट का मेज़पोश!

बड़े क़रीने से सँवारती हैं वो

बच्चों के सपने

उनकी फ़रमाइशें,

उनकी पसंद के खाने को

अपनी फीकी पड़ चुकी हथेलियों से

लपेटती हैं चमकीली सिल्वर फ़ॉइल में

और बस्ते में भरकर

भेज देती हैं उन्हें भविष्य सँवारने

और ख़ुद के वर्तमान को

घोल देती हैं

अविरल बहते आँसुओं में!

माँ का फ़ोन आने पर वो

दे देती हैं

सफलतम अदाकारा को भी मात

हँसते-हँसते माँ से पूछ लेती हैं

मायके से जुड़ी सारी यादों की ख़ैरियत

और माँ के हाल पूछने पर

भर्राऐ गले से बोल देती हैं

आवाज़ नहीं सुनायी देने का एक और झूठ

फिर फ़ोन रखते ही

रो लेती हैं

फूट-फूटकर

बन्द दरवाज़े के पीछे।

हाँ_हम_औरतें_कितनी_दफ़ा_झूठ_बोलती_है



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