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सीमा शर्मा सृजिता

Abstract Inspirational

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सीमा शर्मा सृजिता

Abstract Inspirational

इज्जत की पोटलियां

इज्जत की पोटलियां

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यौवन की देहरी पर पांव रखने से पहले ही लाद दिया गया खानदान की इज्जत को पोटली में बांध

मेरी कोमल पीठ पर 

मेरे शरीर के अंगों के साथ

बढ़ती गई ये पोटली भी 

और इसको ठीक से 

संभाले रखने की जिम्मेदारी भी 

जब दूजे घर आई तो 

उन्होंने भी अपने खानदान की इज्जत

बांधकर एक अलग पोटली में 

लाद दी मेरी दृढ़ हो चुकी पीठ पर 

अब मैं दो खानदानों की इज्जत 

अपनी पीठ पर लेकर चलती हूं 

हां ! बोझ ज्यादा है 

अक्सर थक जाया करती हूं 

मैं ध्यान रखती हूं विशेष कि 

कहीं हिल न जायें ये पोटलियां 

अपनी -अपनी जगह से 

मेरी उम्र के साथ - साथ 

बढ़ता जायेगा ये बोझ भी 

मगर मैं डटी रहूंगी 

संभाले रखूंगी इन पोटिलयों को 

चाहें झुक जाऊं जमीन तक 

मैं स्त्री हूं 

वो भी सनातनी 

खाक हो जाऊंगी 

मगर इन पोटलियों को नहीं उतारूंगी 

मैं ये भी जानती हूं ये उतरेंगी एक दिन

मेरे राख होने से ठीक पहले 

और लाद दी जायेंगी 

मेरे दोनों घरों में जन्म लेने वाली 

भावी स्त्रियों पर 

यही होता आया है 

यही होता रहेगा

मेरे हंसने बोलने की मर्यादा तय थीं 

 जिसे मैंने टूटने नहीं दिया 

निभाया बखूबी 

अब मेरे लिखने की भी मर्यादा 

तय हो चुकी है 

जिसे मैं तोड़ूगीं एक दिन 

लिखूंगी मन का ही 

चाहें हिल जायें ये पोटलियां .....


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