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Meena Mallavarapu

Abstract Inspirational

4  

Meena Mallavarapu

Abstract Inspirational

क्षितिज के उस पार

क्षितिज के उस पार

1 min
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जाना है मुझे क्षितिज के उस पार

है जिज्ञासा, है आतुरता, है ललक 

  जाने कौन सी दुनिया करेगी 

       आवाहन मेरा-

जानते तो हैं, अपेक्षाओं का परिणाम 

धकेल देती हैं इन्सान को दलदल में

सपने रंगीन पल में हो जाते हैं बदरंग

  रिश्तों से गायब हो जाती महक

    उस निर्मल अपनेपन की-

 अपेक्षाओं की लग जाती है दीमक 

मगर हम ठहरे मामूली , सामान्य इन्सान

अपेक्षारहित हों पूर्ण रूप से, नहीं आसान

  बस उसी कमज़ोरी के नाम, यह आस-

    जाना है मुझे क्षितिज के पार

जानना है मुझे, क्या है क्षितिज के उस पार 

होगा दृष्टिगोचर एक विशाल, शून्य ,खालीपन

एक कुंठित अकेलापन या सुकून भरा एकान्त 

   विशालकाय पर्वत पहाड़ों की श्रृंखला 

     सफ़ेद बर्फ़ के ढहते ढेर पे ढेर 

या सफ़ेद कोहरे की चादर इस कोने से उस कोने तक

या सागर महासागर, उठती गिरती लहरों का खेल

तूफ़ानों के, तेज़ हवाओं के आक्रोश, हमले चारों ओर

   हो जाएंगे थक कर बेदम या होंगे तरो ताज़ा

    पुनर्जीवित हो जाए प्राणहीन इन्सान -

या अनन्त गहराई जिसे नापना न हो किसी के बस में

या गहन अंधकार जिसमें हाथ को हाथ नज़र न आए

या उजाला इतना जो चकाचौंध कर दे इन आंखों को-

   मिलेंगे क्या हमें यहां अपने खोए प्रियजन

    जिन की राह देख देख पथरा गईं आंखें

 खूबसूरत फूलों की क्यारियां या अस्थि पंजरों का ढेर?

    होंगे खंडहर या होंगी इमारतें आलीशान 

     इन्सानों की या हैवानों की वह दुनिया 

          जानने को हूं बेताब

         कैसी होगी वह दुनिया 

          क्षितिज के उस पार 

        


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