शिल्पी ने जो करना था कर लिया
शिल्पी ने जो करना था कर लिया
शिल्पी ने जितना करना था कर लिया
बारी उसके बाद अब है अपनी
ख़ुद पर काम करने की-
शक्ल सूरत
जो देनी थी जैसी देनी थी
दे दी कुदरत ने समझ से अपनी-
शिल्पी ने जितना करना था कर लिया
ख़ामियां दिखतीं जब, दिल उदास हो जाता
आईना झूठ नहीं बोलता, है मालूम-
मन चंचल , होता आकर्षित
परिधानों से ,प्रसाधनों से-
सच्चाई से नादां, नहीं परिचित-
अभी ज़िंदगी की गहराई से महरूम-
ख़ामियाँ चौकी मार बैठीं, दिल उदास हो जाता
अनमोल घड़ियां निकल गईं मृगमरीचिका के पीछे
ज़िंदगी की असलियत से मैं अनजान
करती रही कोशिशें अथक
किया वक्त ज़ाया
थी भूली मैं-सोचा हैं निरर्थक
निकल गई ज़िंदगी ,अब गई मैं जान
होगा नहीं कुछ भी हासिल इस मृगमरीचिका के पीछे!
जो कुदरत की देन, करूं उसे खुशी खुशी स्वीकार
उसे संवारूं सजाऊं उसकी नेमत मान-
अपेक्षाओं आशाओं की कतार
सजा कर बुनने न दूं
ख़ुद को - झूठे सपने बार बार-
ख़ुद को न रखूं धोखे में -है यही निदान
शुक्रगुज़ार हो, करूं कुदरत की हर देन स्वीकार
मिली हैं नेमतें दुनिया भर की, करूं उनका सम्मान
संवेदनशील, निर्मल हृदय हो मेरा
जीवन की खूबसूरत लय ताल
उसकी सरगम पहचानूं-
करूं न ख़ुद को अकारण बेहाल
है मेरे चारों ओर जो खुशियों का घेरा
तोड़ूं न उसे-नेमतें जो मिली हैं करूं उनका सम्मान!