लकीरें
लकीरें
हाथों की लकीरों को
कोई तो मोड़ दे ऐ मौला।
जहाँ जाए वो
उन्हीं राहों से इनको जोड़ दे ऐ मौला।।
उसे पाने की हर कोशिश
की है मैंने।
के ये मोहब्बत की शराब
उसी की आँखों से पी है मैंने।।
उसे भी हो जाए मेरे इश्क़ की पहचान
दे ऐसा कोई तोड़ ऐ मौला।
कब तक अकेले लड़ते रहे वो जामाने से,
बाँट लूँ मैं दर्द उसके
दो दिलों को दे ऐसे जोड़ ऐ मौला।।
खड़ा हूँ दर पे तेरे
होठों में फ़रियाद लेकर।
बरसा दे तू अपनी रहमतों का दरिया
और मैं पा लूँ सकूं उसे जहां भर की
खुशियां देकर।।
उसकी मुस्कुराहट का सौदा
मेरी खुशियों के बदले कर ले ऐ मौला।
आए ना उसकी आँखों में एक भी आँसू
झोली मेरी उसके हिस्से के ग़मों से भर दे ऐ मौला।।
मेरे खवाबों के इस खवाब को
हक़ीक़त बना दे ऐ मौला।
दो दिलों की इस अधूरी दास्तां को
मेरी प्रेम कहानी बना दे ऐ मौला।।
हाथों की लकीरों को
कोई तो मोड़ दे ऐ मौला।
जहाँ जाए वो
उन्हीं राहों से इनको जोड़ दे ऐ मौला।।

