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कुलदीप दहिया "मरजाणा दीप"

Romance

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कुलदीप दहिया "मरजाणा दीप"

Romance

तुम लौट आओ

तुम लौट आओ

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वो सुर्ख़ गुलाब

जो थामा था तुमने हाथ में

संग-संग चलने का

किया वायदा था चाँदनी रात में

वो कसमे, वो वायदे

मुझ को सब कुछ याद है !


तुम लौट आओ...

तुम्हारी सब निशानियाँ

नजरें चुराना, छुईमुई सा

शर्माना

आगोश की सरगर्मियां

झील के उस छोर की

वो मुलाकातें, वो कहानियाँ !


वो शाम-ए-सहर

वो सावन की बरसातें

वो उल्फ़त, वो चाहत

दिल में सुगबुगाहट

भीगे-भीगे पल,

बहकी-बहकी बातें !

तुम लौट आओ....


बासंती मदमस्त पवन

खिलखिलाते पंखुड़ियों से

लब पुलकित, मदहोश नयन

बिखरी झुल्फ़ें झूमें ज्यों

सावन की पवन

हां सब मुझको याद है!


तेरी पायलों की खनक

भवरों की गुनगुन

अपलक निहारना

मुझे मन ही मन

नहीं भुला मैं अब तक

उन हसीं लम्हों की छुअन !


वही आसमाँ, वही जमीं

महफ़िल है जवां और

हसीं-हसीं

सुर्ख़ गुलाबों में भी नमी

क़ायनात गवाह है,

साँसें हैं थमी


तुम लौट आओ

तुम लौट आओ...

कि गुलाब फिर से खिल गये हैं...!!









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