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कुलदीप दहिया "मरजाणा दीप"

Romance

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कुलदीप दहिया "मरजाणा दीप"

Romance

छुईमुई

छुईमुई

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चाँद जो निकला पूर्णिमा का    

ब्रम्हांड का गुरुर तोड़कर,    

भोर की शबनमी बूँद सा

 कोमल रूप का लावण्य मेरा, 

पूरी क़ायनात को समेटे हुए   

छुईमुई सा ये बदन रेशमी ।।         


झील से गहरे नयनों में समाए           

असंख्य सुनहले ख़्वाब            

जुगनू से चमकते हैं,       

बिखरी सावन की घटा सी        

काली- काली झुल्फ़ें मेरी,  


ग़ुलाब की अधखिली पंखुड़ियों से पावन,

परम् रसीले पुलकित लब मेरे,      

हाँ रुख़सारों का काला तिल           

कहर ढाता है यूँ मेरा ।।       


मैं भी अनजान हूँ       

इन नशीली,उन्मान परियों सी अठखेलियाँ करती

यौवन की भाव-भंगिमाओं से,मेरे कोमलांगों

की (उभार) तपनजला रही है अंतर्मन की कलियों को।।           


आतूर हूँ मैं भी       

काश कोई आये,  

मेरी इस रंगीन मख़मली      

दुनिया को निहारने।।         


मेरे ख़्वाब जो अधूरे हैं निहार ले,

दुलार देअर्पित करूँ,

समर्पित हूँ मैं करे आलिंगन वो हरजाई

जुल्फ़ों को संवार दे,

प्यासी हूँ मछली सी मैं वो

अपना सर्वस्व निसार दे।।    


खिल उठूँ कुमुदिनी सा     

जो कभी खिला था वहां,     

उस झील के किनारे,  

वो हंसी रातें, वो झरने प्यारे   

तकती रहती हूं हर पल सारे 

भीगी हैं पलकें, मदमस्त नज़ारे।         


छू ले मुझ छुईमुई कोर ह न जाये प्यास कोई,

तुम बिन अधूरी हूँ कब से

अहसास है तेरा, आभास कोई।     

नहीं भूली वो कसमें-वायदे      


मालूम है मुझको वो हँसी-ठिठोली,            

गवाह हैं मेरी वो आज भी              

सिलवटें वो बिस्तर की               

संभाल के रखी हैं सारी           

निशानियाँ अब भी तुम्हारी                 

वो समां, वो बहारें          

वो कहानियां रातों की प्यारी।।                 


दीप" मैंने जला रखें हैं

दीदार की इस चाह में,

कि काश वो हसीन लम्हा बनेगा

हकीकत इसी राह में।


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