खता...
खता...
खता तो खता ही है,
कौन समझ कर करता है इसे,
होनी का कहर,
या वक्त का तकाजा,
या कह लो इसे सितारों की मार।
कहीं कुछ तो है न मेरे यार।
ऐसे ही तो कोई अनजान,
नहीं बन जाता दिलदार।
किसी अपने ने किया होगा,
सब से गहरा वार।
मरने वाले के साथ कौन,
मरता है कभी।
जीवन है यह,रो कर,
या हँस कर,
अपने घाव खुद ही पोंछ कर,
साँसे हैं तो जीयेगा न मेरे यार !

