परवाने
परवाने
हम वो परवाने नहीं जो ग़म की लौ में हैं जलते,
यादें ही हमदम हैं अपनी हम नहीं तन्हा हैं चलते!
लाखों कर लो कोशिशें या जाँ भी दे दो तुम चाहे,
आँखों में जो इश्क़ ना हो तो कहाँ सपने हैं पलते!
खाये धोख़े हम ने इतने ज़िन्दगी की राहों में,
पाने को साथी पुराने अब नहीं अरमाँ मचलते!
दूर कितने भी हैं दोनों पर मिले हैं दिल जो अपने,
ये मीलों के फ़ासले भी अब नहीं हमको हैं खलते!
पासा हो चौकड़ का या फ़िर हो मैदान-ए-जंग ही,
आगे जाने की ज़िद में हम किसी को नहीं हैं छलते!
सूरज को ढँक लें कितनी भी दुःखों की ये बदलियाँ,
हौंसलों से चढ़ने वाले दिन कभी नहीं हैं ढलते!
रहमत की होती बारिशें पर क़िस्मत की चादर फ़टी,
ग़र मिल जाता जो रफ़ूगर तो नहीं दर बदर भटकते!