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Ashutosh Kumar

Abstract

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Ashutosh Kumar

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परवाने हैं हम साहब

परवाने हैं हम साहब

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परवाने हैं हम साहब, चराग़-ए-ग़म में नहीं जलते,

यादें साथ चलती हैं, हम तन्हा नहीं चलते !


इक उम्र गुज़री है अपनी, लम्हा लम्हा संजोने में,

दीदार भरी आँखों में, नये सपने नहीं पलते !


कई दोस्त मिले बिछड़े, इस क़दर जिंदगी के सफ़र मे,

कि नए हमराह को, अब अरमाँ नहीं मचलते !


तुम मुझ से दूर, मैं तुझ से दूर हूँ तो क्या हुआ,

दिल मिलें हों अगर, तो मीलों के फ़ासले नहीं खलते !


खेल शतरंज का हो या हो मैदान-ए-जंग,

बस जीतने के लिये हम, किसी को भी नहीं छलते ! 


दुःखों के बादल कितनी भी घनी शाम लायें,

हौसलों के समन्दर से उगे सूरज, कभी नहीं ढलते !


ठंड बहुत है और किस्मत की चादर फटी है,

रफ़ूगर जो मिल जाता कहीं, इस कदर नहीं भटकते !


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