परवाने हैं हम साहब
परवाने हैं हम साहब
परवाने हैं हम साहब, चराग़-ए-ग़म में नहीं जलते,
यादें साथ चलती हैं, हम तन्हा नहीं चलते !
इक उम्र गुज़री है अपनी, लम्हा लम्हा संजोने में,
दीदार भरी आँखों में, नये सपने नहीं पलते !
कई दोस्त मिले बिछड़े, इस क़दर जिंदगी के सफ़र मे,
कि नए हमराह को, अब अरमाँ नहीं मचलते !
तुम मुझ से दूर, मैं तुझ से दूर हूँ तो क्या हुआ,
दिल मिलें हों अगर, तो मीलों के फ़ासले नहीं खलते !
खेल शतरंज का हो या हो मैदान-ए-जंग,
बस जीतने के लिये हम, किसी को भी नहीं छलते !
दुःखों के बादल कितनी भी घनी शाम लायें,
हौसलों के समन्दर से उगे सूरज, कभी नहीं ढलते !
ठंड बहुत है और किस्मत की चादर फटी है,
रफ़ूगर जो मिल जाता कहीं, इस कदर नहीं भटकते !
