STORYMIRROR

Sudhir Srivastava

Abstract

4  

Sudhir Srivastava

Abstract

ईश्वर की लीला

ईश्वर की लीला

1 min
436


ईश्वर की लीला भी कितनी अजीब है

जो चाहते हैं हम, वो होता नहीं है

जिसकी कल्पना तक नहीं करते

वो जरूर हो जाता है।

जिसे जानते हैं हम

जिससे रिश्ता है हमारा

जिसे अपना कहते नहीं अघाते,

पर उससे मिली पीड़ा नासूर से बन जाते,

हम तड़प कर रह जाते

ऊपर से भले ही न कुछ कह पायें

पर अंदर से रहते हैं खार खाये।

यह भी विडंबना ही तो है

जिसे जानते पहचानते नहीं

जिससे दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं

अचानक वो अपना बन जाता है

पूर्व जन्म के रिश्तों का अहसास जगाता है,

दिल में उतरकर बस जाता है,

जीवन को नव मोड़ दे जाता है।

हम शीष झुकाने से भी नहीं हिचकिचाते हैं

उसके कंधे पर सिर रख सारे ग़म भूल जाते हैं,

उसकी गोद में सिर रखकर आंसू भी बहा लेते हैं,

अपनी पीड़ा आंसुओं संग बहा देते हैं,

उसके शीतल स्पर्श को अपने सिर पर पा

जैसे माँ की ममता, बहन का प्यार, बेटी का दुलार

पिता का संबल, भाई का स्नेह

किसी अपने का अपनत्व सा

महसूस कर निहाल हो जाते हैं,

अपने सारे ग़म कुछ पल के लिए ही सही

हम हों आप भूल ही जाते हैं

जीवन सुख शायद ऐसे ही होते हैं

जिसका अनुभव हम सब 

कभी न कभी जरूर करते हैं

ईश्वर की लीला को प्रणाम करते हैं। 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract