Ghazal
Ghazal
मुद्दतों बाद खुद से मुलाक़ात हुई और
इसमें भी तेरी और सिर्फ तेरी बात हुई
उजाला रहा दिन भर तेरे इंतजार का
और फिर तन्हाइयों की रात हुई
साहिल प्यासा ही रहा समँदर के साथ चल के भी
और समँदर में मुसलसल बरसात हुई
ज़ुस्तज़ू रही राह-ए-इश्क़ में तेरे साथ की
बे-आरज़ू मगर साथ ग़मों की बारात हुई
अपने लिए थी जो चंद लम्हों की मुलाक़ात
उनकी नज़रों में ये मेरे उम्र भर के इंतज़ार की मुसावात हुई
करने थे उनसे मिलकर उनकी जफ़ाओं के गिले हुई जो
मुलाक़ात तो उन्हें छोड़ उनसे जमाने भर की शिकायात हुई।
