Ghazal No.7 साहिल प्यासा ही रहा समँदर के साथ चल के
Ghazal No.7 साहिल प्यासा ही रहा समँदर के साथ चल के
मुद्दतों बाद खुद से मुलाक़ात हुई और
इसमें भी तेरी और सिर्फ तेरी बात हुई
उजाला रहा दिन भर तेरे इंतजार का
और फिर तन्हाइयों की रात हुई
साहिल प्यासा ही रहा समँदर के साथ चल के भी
और समँदर में मुसलसल बरसात हुई
ज़ुस्तज़ू रही राह-ए-इश्क़ में तेरे साथ की
बे-आरज़ू मगर साथ ग़मों की बारात हुई
अपने लिए थी जो चंद लम्हों की मुलाक़ात
उनकी नज़रों में ये मेरे उम्र भर के इंतज़ार की मुसावात हुई
करने थे उनसे मिलकर उनकी जफ़ाओं के गिले हुई जो
मुलाक़ात तो उन्हें छोड़ उनसे जमाने भर की शिकायात हुई।