STORYMIRROR

ANIRUDH PRAKASH

Abstract

4  

ANIRUDH PRAKASH

Abstract

ग़ज़ल. 45 आ ना जाए कहीं सैलाब मयकदे में यहाँ बैठ कर अंजाम-ए-वफ़ा की बा

ग़ज़ल. 45 आ ना जाए कहीं सैलाब मयकदे में यहाँ बैठ कर अंजाम-ए-वफ़ा की बा

1 min
277

ज़िक्र-ए-खुदा ना कर जहाँ-ए-मसाइल की बात ना कर

एक दिवाने से बेकार की बात ना कर 


आ ना जाए कहीं सैलाब मयकदे में 

यहाँ बैठ कर अंजाम-ए-वफ़ा की बात ना कर


अदब-ए-चमन सीख सैर-ए-चमन से पहले 

खिलती कली से यहाँ ख़िज़ाँ की बात ना कर


नहीं बन सकता ग़म-गुसार तो ना सही मगर 

दुनिया के मारों से फ़लसफ़े की बात ना कर


कहे तो एक किताब लिख दूँ उसके मुताल्लिक़ 

बस मुझसे मेरे बारे में बात ना कर


कुछ मेरी सुन कुछ अपनी सुना 

शब-ए-वस्ल में ज़माने भर की बात ना कर


जिन्होंने खोये हों अपने मज़हबी फ़सादों में 

उनसे खुदा की ख़ुदाई की बात ना कर


मेरी हक़ीक़त को अफ़साना मत बता

मुझसे घुमा फिरा के बात ना कर


दोस्त कम नही हैं दिल जलाने को 

अब तू तो बातों बातों में उसकी बात ना कर


बार बार वादा निभाने का वादा ना कर 

मुझसे रहनुमाओं मुवाफ़िक़ बात ना कर 


आरज़ू है अगर तुझे रहबर बनने की तो फिर 

बात बात में खौफ-ए-सफर की बात ना कर


जो अहल-ए-कश्ती अरसे से प्यासी हो बीच समन्दर 

उससे अज़्मत-ए-समन्दर की बात ना कर


बेशुमार बिक रहा है झूठ सच का लिबास ओढ़ के 

इस बाजार में सदाक़त को खरीदने की बात ना कर


लौटा हो जो शख़्स बिना जुर्म की सज़ा काटकर 

उससे पिंजरे में कैद बेगुनाह परिंदों की बात ना कर


अपने ख्वाबों को तामीर करने की वो सज़ा मिली है मुझे

कि अब मुझसे ख़्वाबों में भी मेरे ख़्वाबों की बात ना कर।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract