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Deepali suyal Suyal

Romance

4  

Deepali suyal Suyal

Romance

खामोशियां

खामोशियां

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फरेबी हूं फरेबी ही रहूंगा

तुम दिल ना लगाओ मुझसे


रूठा हूं बरसों से जमाने से मैं

तुम यूं प्यार ना जताओ मुझे


क्या खूब सितम किया है इन रातों ने मुझपे

तुम बेवजह ख्वाब में सताओ ना मुझे


सिर्फ़ उनका होना ही मंज़ूर था मुझे

अब तुम और क़रीब आओ ना मेरे


उसके होठों की गरम स्याह आज भी याद है

चुमूँ तुम्हारे लबों वो तलब लगाओ ना मुझे


खाली पड़ा है मेरे दिल का शहर उनके जानें से

तुम आकर अब घर बसाओ ना इसमें


ये दुनियां लगती नहीं अब मुझे मेरे काम की

तुम उम्मीद जीने की सिखाओ ना मुझे


ये किस्से कहानियां सब झुठी लगने लगी है मुझे

यूं ग़ज़ल- ए- गुलजार सुनाओ ना मुझे


कभी नदी सा बहता कभी नदी सा थमता हूं

फिर आए सैलाब मुझमें ये मोहब्बत सिखाओ ना मुझे


बेदर्द जमाने से दर्द ही सीखा है मैंने

मरहम वो इश्क़ का लगाओ ना मुझे


ख़ुद को खो कर मोहब्बत की थी उससे

कहूं में अब खुद को बेवफ़ा ये जुर्म कराओ ना मुझसे


ये मुस्कान यूं हीं नहीं गंवाई है मैंने

अब तुम बेवजह हंसाओ ना मुझे


ढुंढता है ये दिल भंवरे की तरह ना जाने किसे

तुम कली वो गुलाब की ख़ुद को बताओ ना मुझे


उसकी सांसे बैचेन करती है मुझे आज भी

अपनी सांसो से याद उसकी दिलाओ ना मुझे


तन्हा हूं तन्हा ही रहूंगा

उसके होने का एहसास दिलाओ ना मुझे।


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