बचपन
बचपन
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याद आता है वो
जब सब साथ होते थे,
घंटों तक बातें होती थीं
हँसी-ठिठोली से।
हर शाम सराबोर होती थी
एक दूसरे पर खूब इल्ज़ाम
लगाए जाते थे,
चोरी-चोरी आम भी खाये जाते थे।
दीदी की डांट
भईया का वो प्यार,
कितने खुश थे हम
हम सब आज़ाद पंछी हुआ करते थे।
खूब शोर करते थे
किसी की ना सुनते थे,
दादाजी का वो प्यार याद आता है,
मम्मी का वो डंडा भी याद आता है,
पापा की वो रोज शाम की टॉफी याद आती है।
आँगन की वो चहल-पहल
जब देखती हूँ खाली आँगन;
अपना वो बचपन फिर याद आता है...