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RAJESH KUMAR

Classics

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RAJESH KUMAR

Classics

साइकिल की यात्रा

साइकिल की यात्रा

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कार्ल डैरिश,स्पाल्डिंग

 मैकमिलन,स्टार्लिं

 ने किया, ईजाद

समय के फेर ने किया 

तेज से, तेज तर्रार


लकड़ी से, लोहे तक

लोहे से, फाइबर तक


सदियों से, अभी तक

गुलामी से, आज़ादी तक

कभी नही से, अभी तक

अभी से, आगे तक


सभी का साथम-साथ

हाथी,घोड़ों से छुटा साथ


 मिला सबका, साथ

जीवन किया, आसान


देश में,90 के दशक से 

साइकल को लगे पंख


तब से पहियों,फ्रेम

ब्रेक,व्हील बदले सब


दूध से, घास तक

पत्र से, समाचार तक


हर काम मे, दिया साथ

राजनीति हो या आम

या हो, कोई खाश


दुनिया के ना जाने

कितने रंग है,देखे


अपन रूप, को बदला 

               जग, को बदलते देखा 


बचपन से, बुढ़ापे तक 

दिया है साथ,इससे

 ना करें कोई, इनकार


मोटर  ने दिया है, आराम

पर मेरी है,बात खास

कोई नहीं, ले सकता 

मेरा कोई, स्थान


मोटर, को भी मैंने 

दोस्त बनाया, अपना।


खुश रहे, खुश रखें 

जीवन का, सार


जितना हो, सके

मेरा करो, इस्तेमाल।


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