माँ तेरी रचना हूँ मैं
माँ तेरी रचना हूँ मैं
माँ तेरी रचना हूँ मैं
सभी कहें सर्वोत्तम
ये आस लिए मन में
रंग जाती नित नए रंग में।
जिसके निकट मैं जाती
उसके भावों में समाने की
हर कोशिश मैं कर जाती हूँ
माँ तेरी रचना हूँ मैं।
प्यार और ममत्व तुम सा
सब पर लुटाती हूँ मैं
सबके चेहरे की मुस्कान बनूँ
ये चाहत लिए फिरती हूँ मैं।
माँ तेरी रचना हूँ मैं।
तेरे नक्शे कदम पर चलती हूँ
पर प्रेम सुधा तेरे जैसा
नहीं बरसा पाती कभी मैं
फिर भी कोशिश करती हूँ।
माँ तेरी रचना हूँ मैं।
नहीं सीखा हार मानना
सीखा गुरुजनों की बात मानना
हर बात सदा सही नहीं होती
गलत बात भी नहीं मानती।
माँ तेरी रचना हूँ मैं।
गुरुजन जब मिथ्या कह जाते हैं
तब करना पड़ता है तकरार
झट माफी मांगती अपने मृषा की
उनकी मिथ्या सह नहीं पाती।
माँ तेरी रचना हूँ मैं।
मैं लड़की हूँ, इस लिए सह लूँ
इस धारणा को नहीं मानती
ममत्व व प्यार में भी गलत नहीं करती
कभी गलत करने, भी नहीं देती।
माँ तेरी रचना हूँ मैं।
सतत प्रयत्नरत हूँ नूतन करने में
सुख-दुःख को दिन-रात सा समझती मैं
आशा की क्षणिक किरण पकड़
आगे बढ़ने में नहीं नहीं डरती हूँ।
माँ तेरी रचना हूँ मैं।
मुझे बता दो कहाँ गलत हूँ मैं
गलत को गलत कहना, क्या गलत है?
माँ इक बार फिर से सीख सीखा दो
जीवन की मिथ्या में चलना बतला दो।
माँ तेरी रचना हूँ मैं।
माँ तेरी रचना हूँ मैं।