पुष्प
पुष्प


धरा पर जब छाए घटा
पुष्प बिखेरे अद्भुत छटा
रंग-बिरंगी भू कर जाए
भीनी खुशबू फैलाए।
रंग-रूप और वास अनेक
सुगन्ध और सुवास अनेक
तितली,भ्रमर,मधुप आते
इन सब के मन को भाते।
कीटों का पोषण करते
मुस्कान बिखेर मन हरते
उनके मधुर गुंजन को सुन
नित्य खिल नव रूप धरते।
राजा की बगिया में खिलते
फ़क़ीर की कुटी में मुस्काते
मंदिर की सीढ़ी पर बिक
श्रीहीनों का पेट भरते ।
कभी देवों के शीश चढ़े
कभी वीरों के शव पे सजे
>कभी रमणी की वेणी में
कभी जयमाल में गुथें।
कोई पुष्प जल में खिलते
कोई मरुस्थल में मुस्काते
पुष्प अनेक गुण अनेक
हर पुष्प कुछ नया सिखाते।
कोई मधु मकरन्द बनाते
कोई औषधि के काम आते
कांटों के संग हंसना कैसे
पुष्प हमें ये गुण सिखाते।
वृन्दावन की बगिया शोभे
सांवरिया का मन ये मोहे
राधा की वेणी में बिंध झूले
सखियाँ मन ही मन फूले।
पुष्प की हर बात निराली
मन में भर देता हरियाली
उपवन की शोभा है इनसे
इनसे जीवन में खुशियाली।।