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Priyanka Shrivastava "शुभ्र"

Abstract Inspirational

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Priyanka Shrivastava "शुभ्र"

Abstract Inspirational

जीवन संध्या

जीवन संध्या

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जीवन की संध्या को हम कहें बुढ़ापा

बुढ़ापा में याद आए बहुत अपनापा

शरीर शिथिल मन हो जाता कोमल

प्यार के मीठे बोल से मिलता है बल।


व्यस्त रहे हम जीवन भर काम में

त्रस्त रहें जीवन संध्या आराम में ।

जब तक जीवन साथी का साथ मिले

समय कटे बातों में रहें खिले-खिले।


बुढ़ापा में तन-बदन पर आती झुर्रियाँ

समुद्र की लहरों सी प्यारी लगे झुर्रियाँ

इन झुर्रियों के पीछे है छुपा तजुर्बा

समझो इनको ज्ञान का पूरा डब्बा।


अनुभवी होती बुढ़ापा की नज़र

जो हर पल रखे सब पर नजर

जीवन अनुभव से हुए ज्ञान इकट्ठा 

देख के चेहरा खोले कच्चा चिट्ठा।


दादा-दादी, नाना-नानी बच्चों को भाते 

बच्चों के संग बच्चा बन वे खेलते खाते

खेल-खेल में बच्चों को नई बात बताते

बच्चे भी इनसे मन की बात कह जाते।


जीवन भर कर्मों से दिया सब को दान

जीवन संध्या में मांगे अब ये प्रतिदान

इनको नहीं चाहिए अब अन्न-धन

इन्हें चाहिए प्यार के दो मीठे वचन।


जिस घर में मिलता बुजुर्गों को सम्मान

 प्यार और सौहार्द में होता खान-पान

सदैव होती है वहाँ सुखों की बरसात

आता नहीं कभी दुःख का चक्रवात।


 


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