मास्क
मास्क
कोरोना का शत्रु मास्कअपना साथी
कोरोना काल में आया बन परमार्थी
राजा रंक सभी ने इसे प्यार से पहने
सबके मुख पर सजा जैसे हो गहने।
ये नाक पर ये छा गया बन कर नकाब
नाक का नकाब और कान बना रकाब
पहले जो नाक ढकता ये ऊँची न होती
बात-बात पर यहाँ तलवार न खिंचती।
जाने क्यों हमको ऐसा लगता है
पहले जो आता वो अनोखा करता है
नाक ढक केवल नाक न बचाता
नाक की खातिर लड़ाई भी बचाता।
कैसे कहूँ देर से आना तेरी गलती है
जन्म से पहले ट्रेन कहाँ खुलती है
कोरोना से युद्ध को तुझे सामने लाया
हम सब ने तुझे अपना ढाल बनाया।
जब पहली बार तू सामने आया
हमने तुममें अनेक गुण पाया
उम्मीद पर जब तू खड़ा उतरा
तब अनेक मोड़ पर तुझे पकड़ा।
नाक ढकी हो कोई नकेल न कसता
मोटी-पतली, छोटी-चौड़ी सब चलता
मुँह और आँख के बीच रह जीवन देता
नाक का सिर्फ एक यही काम होता।
नाक का सिर्फ एक यही काम होता
भारत फिर अमन चैन का बीज बोता
सभी देश भारत, आते लेने शिक्षा
भारत में मिलता अमन चैन की दीक्षा।
ऐ मास्क ! बड़ा मजे तू करता है
नाक पर चढ़ पसर कर सोता है
नाक कान दोनों पर तेरा कब्जा
पर पहचान छुपा कर देता बेमजा।
ऐ मास्क ! गुणकारी हो पर मिलेगी सजा
दोस्त बन नाक पर बैठ मत कर तू मजा
अनेक वस्तु से बन तू अपना भाव बढ़ाता
अंत में कचड़ा में जा उसका भार बढ़ाता।
तू जितना ही मानव हितकारी है
उससे ज्यादा ही अहितकारी है
पहचान छुपा करता तू शरारत
साफ न होता औ करता आहत।