ख़्वाहिशों के रंग हज़ार
ख़्वाहिशों के रंग हज़ार
दुनिया में जन्मा हर कोई लेकर ख्वाहिशें हज़ार
किसी ने देखा सपना बड़े अफ़सर बन उड़ना गगन पार
कोई त्याग गाँव रह मातपिता के चरणों में स्थान
सपने सबके पूरे करने में रह गया अधूरा उसी का ख़्वाब
जो सबकी ख़ातिर प्रातः से रात्रि तक जुटा रहा था परिवार
होने लगीं ख्वाहिशें पूरी,स्त्री पुरूष ने दिया दूजे का साथ
मिलकर लगा रहे अब परिवार की नैया पार
कुछ सपने दोनों के पूरे हुए अब खुशहाल दिख रहा था घरवार
रिश्तों को मत छोड़ो, ख़्वाहिशों का अंत नहीं इसके हैं रंग हज़ार।
