राह
राह
थक गयी हूँ सबको खुश करने की क़वायद में
कोई मुझे भी खुश करे ऐसा कोई फ़रिश्ता भेज दो
थक गयी हूँ, तुम औरों से बिलकुल बेकार हो सुन के
कोई मेरी आत्मा को निचोड़ने वालों को बोल दो
दिल क्या,अब मन भी छलनी कर दिया है
जिसको देखो उसी ने अपना रौब दिखाना शुरू कर दिया है
क्या स्त्री जीवन के किसी मोड़ पर खुद को मज़बूत पायेगी
समानता तो दूर स्त्री को इंसान भी समझना बंद कर दिया है
कैसे स्वयं को खुश रखना है यह स्वयं स्त्री को अब समझना है
हर कार्य में निपुण बनने का तमग़ा लेने से बचना है
क्यूँ कि स्त्री भी इंसान है,देवी न बनने का प्रण करना है
तभी समानता पायेंगी स्त्रियाँ जीवन कि राह स्वयं चुनना है।