अंतरात्मा (१)
अंतरात्मा (१)
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हारी बाजी भी जीत जाते हैं
जब अंतरात्मा पर क़ाबू पा लेते हैं
हर फिक्र को मिटाते चले जाते हैं
जब मन के द्वंद्व पर अपने दिल को सजा लेते हैं
आँसुओं के सैलाब को आने नहीं देते
सागर की लहरों को जैसे उफान से रोक लेते हैं
बड़ी मुद्दत से अंतरात्मा से सिर्फ़ कह पाये हैं
ग़र डूब जाता साहिल तो क्या उसे बहने से रोक लेते हैं
दिल ए मोहब्बत यूँ ही नहीं मिटने देते
ग़र एक बार वो भी हमें आँख मूँद दिल से देखते
ख़ुदा का बनाया है ये रंग रूप
हम भी उनकी निगाहों में बसते जब वो सूरत नहीं सीरत देखते