पथ
पथ
निरन्तर बढ़ते जाना है
इस जीवन पथ पर
कभी झुककर कभी अड़कर
निभाना इस पथ को
अपने को यूँ व्यर्थ न समझो
दुखों में ममता का पान पाओगे
इन्हीं से,पथ पर
कभी गिरोगे
कभी गगन छुओगे
पर पंखों को उतना फैलाना
के लौट आओ अपने पथ पर
पा लेना फ़तेह
हर दुःख की चोटी पर
सुख में अपनों को न भूल जाना,
इस पथ पर।
