मेरे पिताश्री
मेरे पिताश्री
मेरी दुनिया, मेरा हर पल खास बनाते रहते हैं।
हर पल मुझ पर रखते दृष्टि , आधार है मेरे पिताश्री।
तब चूते छप्पर से हमें बचाकर खुद जगते थे रातों में ।
अब घर की नींव, दीवारें सब कुछ , अपार हैं मेरे पिताश्री।।
कभी मेरे खर्चों का बटुआ , कभी डांट का सार बन गए ।
स्नेह हृदय से करते हमको , डर भी कभी अपार है पिताश्री ।
दफ्तर में सब आप से पूछे कैसे काम ये होगा अब ?
आज तलक चर्चा में रहते , अलौकिक उपहार हैं पिताश्री ।
जब भी किसी को जरूरत पड़ती लग जाते हैं तन मन से
गांव भरे की मदद है करते , प्रभु का उपकार हैं पिताश्री।
डील डौल में उनके जैसा गांव भरे में कोई नहीं।
व्यक्तित्व अनूठा , लंबे ऊंचे कद्दावर है पिताश्री
जब जब नजर नहीं कुछ आता, सोचों में होता हूं मैं
तब तब जीवन में मेरे तुम ही समाधान हैं पिताश्री।
