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मानव सिंह राणा 'सुओम'

Classics

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मानव सिंह राणा 'सुओम'

Classics

मेरे पिताश्री

मेरे पिताश्री

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मेरी दुनिया, मेरा हर पल खास बनाते रहते हैं।

हर पल मुझ पर रखते दृष्टि , आधार है मेरे पिताश्री।


तब चूते छप्पर से हमें बचाकर खुद जगते थे रातों में ।

अब घर की नींव, दीवारें सब कुछ , अपार हैं मेरे पिताश्री।।


कभी मेरे खर्चों का बटुआ , कभी डांट का सार बन गए ।

स्नेह हृदय से करते हमको , डर भी कभी अपार है पिताश्री ।


दफ्तर में सब आप से पूछे कैसे काम ये होगा अब ?

आज तलक चर्चा में रहते , अलौकिक उपहार हैं पिताश्री ।


जब भी किसी को जरूरत पड़ती लग जाते हैं तन मन से

गांव भरे की मदद है करते , प्रभु का उपकार हैं पिताश्री।


डील डौल में उनके जैसा गांव भरे में कोई नहीं।

व्यक्तित्व अनूठा , लंबे ऊंचे कद्दावर है पिताश्री


जब जब नजर नहीं कुछ आता, सोचों में होता हूं मैं

तब तब जीवन में मेरे तुम ही समाधान हैं पिताश्री।


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