रुदाली
रुदाली
उसकी आंखें रुदाली सी
वो मुस्कुरा दे तो
मानो मीठे पानी के झरनों को
दिशा मिल जाये और
उदास हो तो खुद
बरसता हुआ कोई मेघ बन जाये
उसकी फितरत भी बड़ी अजीब सी है
छू लो किसी ग़ैर को तो
वो अपना हो जाये और फेर ले
निगाहें तो अपना भी ग़ैरबन जाये
उसके इस रुआंसा और रुदाली अंदाज़ से
मानो सब मूक बधिर बन जाते है
वो कब कौन सा रूप अख़्तियार करेगी
यह उसके फरिश्ते भी न जान पाते है
वो अश्क़ों को पी जाएं अपने तो
सारा समंदर भी सूखा सकती है
वो अपनी पर आ जाये तो
पर्वत क्या आसमान झुका सकती है
वो औरत है देवी है अपनी पर आ जाये तो
पत्थर को खुदा और खुदा को पत्थर बना सकती है।