STORYMIRROR

जयति जैन नूतन

Classics

4  

जयति जैन नूतन

Classics

खामियां

खामियां

1 min
423

खामियाँ तो बहुत हैं मुझमें

हां मैं इन्हें अपनाती हूँ

कुछ देर खुद से झगड़ लूं

तो बेहद शांत हो जाती हूँ

हां मुझे पता है तुझे पसन्द नहीं

मेरी आदतें मेरे शौक ये जुनून

पर क्या करूँ इनसे अलग होते ही

मैं खुद में ही उलझ जाती हूँ।


इतना मुझे पसंद नहीं तुम्हारी तरह 

हर बात पर सबका ख्याल रखना

मैं तो वो हूँ जो खुशनुमा मौसम में

खुशबू की तरह बिखर जाती हूँ।


समय नहीं कि तुम सुन सको

मेरी बातों को कभी ध्यान से।

तुम्हें तब भी फर्क नहीं पड़ता तो 

मैं अक्सर रूठ जाती हूँ।


जो रिश्ते अपनेपन का एहसास नहीं दिलाते

कहते हैं कुछ कभी, कभी इल्जाम लगाते

मैं उन्हें पसंद नहीं ये रोज ही मुझे बताते

मैं फिर भी तुम्हारी खातिर खुद को संभाले जाती हूँ।


आ कुछ देर मेरे साथ बैठ

मैं तुझे दिल का हाल सुनाती हूँ

तुम्हें पसन्द ना आये कुछ तो बताना

मैं खुद को भी दोषी ठहराती हूँ।


खामियां यूं तो बहुत हैं मुझमें

मैं कहने से भी नहीं कतराती हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics