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Rashmi Sthapak

Classics

4  

Rashmi Sthapak

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दोहा-दरबार

दोहा-दरबार

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 सभी यंत्र से हो गए,

 मन की जाने कौन। 

बलवा करते बावले, 

चिंतक साधे मौन।। 

 

चल-चल कर अब थक गए, 

मंज़िल मिली न छाँव। 

राही को जो पूजते,

 कहाँ गए वो गाँव।। 

 

तन तो है बीमार सब, 

मन के भी सौ रोग।

 लालच में अंधे सभी, 

भूले पावन जोग।। 

 

गर्म रेत पर नीर-सा, 

सुख का बस अहसास। 

जाने किस अभिशाप से, 

मिला उसे वनवास।। 


 आज़ादी की बात से,

 मंच हुए रंगीन। 

महिमा अपनी कर रहे, 

क्षत्रप हो तल्लीन।। 

 

गली-गली मजमे लगे,

 नाटक देखें लोग। 

अपनी ही तारीफ का, 

लगा सभी को रोग।।

  

आँख खोल अपनी करें, 

सच्चाई की बात। 

मुश्किल से हमको मिली, 

आज़ादी सौगात।।

 

 निज भाषा सम्मान से, 

जुड़ा हुआ उत्कर्ष। 

आज उसी को भूलकर। 

मना रहे हम हर्ष।।

 

 त्याग-अहिंसा से खिला, 

आज़ादी का फूल। 

अब सत्ता के लोभ में,

 भूले नामाकूल।। 

 

याद करो क़ुरबानियाँ, 

आज़ादी के मंत्र।

 शोणित से हर वीर के, 

रचा गया गणतंत्र।।

 

 जय जय जय माँ भारती,

 ऊँची इसकी शान।

 अजर-अमर आज़ाद है, 

अपना हिंदुस्तान।।


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