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अंकित शर्मा (आज़ाद)

Abstract Tragedy Classics

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अंकित शर्मा (आज़ाद)

Abstract Tragedy Classics

हकीकत

हकीकत

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टकराती थी, 

फिर लौट कर आती थी

आवाज मेरी , 

पत्थर जैसे दिल से तुम्हारे,


हम फकत समझते थे,

तुम भी मुझे पुकारते हो,

उतने ही प्यार से

जितने कि हम।


वहम हमने भी पाले थे,

हसीं सपने, हसीं किस्से,

हकीकत डराती है बहुत

अब मुझको हकीकत में।


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