हकीकत
हकीकत
टकराती थी,
फिर लौट कर आती थी
आवाज मेरी ,
पत्थर जैसे दिल से तुम्हारे,
हम समझते थे फ़कत,
तुम भी पुकारते हो हमें,
उतने ही प्यार से
जितने कि हम,
तुम्हें।
वहम हमने भी पाले थे,
हसीं सपने, हसीं किस्से,
हकीकत डराती है बहुत
अब हमको हकीकत में।
टकराती थी,
फिर लौट कर आती थी
आवाज मेरी ,
पत्थर जैसे दिल से तुम्हारे,
हम समझते थे फ़कत,
तुम भी पुकारते हो हमें,
उतने ही प्यार से
जितने कि हम,
तुम्हें।
वहम हमने भी पाले थे,
हसीं सपने, हसीं किस्से,
हकीकत डराती है बहुत
अब हमको हकीकत में।