ख़्वाहिशों में ढल रहा
ख़्वाहिशों में ढल रहा
ख़्वाहिशों में ढल रहा था दिन, तन्हा हर पल कट रहा था, ठंड के आगोश में ठिठुरता "हार्दिक" रहा! बेफ़िक्र सोच रहा था,, अब जो भी होना होगा। बस वहीं जीवन मे होता रहेगा।
जीवन फिर से अपना बनाना होगा, नयीं नीति से नया जीवन का निर्माण करना होगा। फिर से हर बार की तरह पहले जैसा आगाज़ करना।
निकट नहीं यह जीवन होगा।
विकट नहीं यह प्रीतम होगा।
सफल वही होता "हार्दिक"
प्रकट नहीं यह विशेष होगा।
ख़ुद को ख़ुद से ख़ुद में ढूंढना जीवन अपना "हार्दिक" हर बार तलाशना निश्चिंत होकर निडरता से तू अपना "फर्ज़" निभाना।हर समय हर ख़्वाहिशों को पूरा करना। सफल मंज़िल जो होगी तेरी, बस तू उस ही मन्ज़िल की औऱ अपनी राह चुनना।
नहीं किसी से मोल रखना।
नहीं किसी से तोल रखना।
जीवन वही अपना "हार्दिक"
नहीं किसी से बोल रखना।
ख़ामोशी कह नहीं पाएगी, ज़िन्दगी सह नहीं पाएगी। अपने जीवन को अपना बनाकर कभी यह तुझें "हार्दिक" राह दिखाएगी। ख़्वाब होगा, लेकिन पूरा जब, जब तू उन ख़्वाबों में अपना पिरोयेगा।
सफल जीवन में अपनी मन्ज़िल ख़ुद को ख़ुद से पहुँचाएगा, ठंड में ठिठुरना तेरा ख़यालों में खोना जीवन के उन स्वप्नों में स्वप्न अपने देखना यह तो सिर्फ़ बात हो सकती हैं।
मेहनत करना ख़ुद से सीख।
मेहनत रखना ख़ुद से सीख।
जीवन में रंग भरना "हार्दिक"
मेहनत अपनी ख़ुद से सीख।
ख़्वाहिशों में जो ढल रहा था दिन उसे तू ढल जाने दें, ठंड में तू ठिठुरता रहा, उसे तू अब भूल जा,बस वक़्त को अपना बना जीवन मे "हार्दिक" स्वप्न अपने पूरे जीवन मे कर दिखा।
स्वप्न अपने पूरे करना तुझे।
जीवन में आगे बढ़ना तुझे।
अपने स्वप्नों को तू "हार्दिक"
जिंदगी में निभाना हैं तुझें।
जीवन भर साथ निभाना, हार कभी मानना नहीं,अपनी तरफ से ख़ुशहाल जिंदगी में अपने, स्वप्न साकार कर के दिखाना हैं।
