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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Classics

4  

सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Classics

इक प्रयास (४)

इक प्रयास (४)

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बड़े – बूढ़े कह गये, रख लो इसका ध्यान

सूरज में दम नहीं, अँधियारा है अति बलवान। 


खून – पसीना इक करता, फिर भी रहा गरीब

दो वक्त की रोटी मिले, जगे घर का नसीब। 


आकर हमसे पूंछ लो, कैसा है ये संसार

ग्राहक जैसे दीखते, वैसा ही है बाज़ार। 


घर पर वो बोले नहीं, बाहर हैं मौन

‘परिमल' बंद किताब है, बाँचे उसको कौन। 


मन को उसके मोह लो, बोलो मधुर बोल

दोगे तो छोड़ पछताओगे, मुक्तक हैं अनमोल। 


सुर से सच्ची प्रीति है, वेदना में डूबे बोल

बसा लो अपनी आवाज में, बैजू के रस घोल। 


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