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Arun Kumar Prasad

Classics

4  

Arun Kumar Prasad

Classics

जय हो

जय हो

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महमानव, तुम्हारी जय हो।

तुम्हारी दैनंदिन दानवता

‘सुरसा’ के मुख की तरह

कितना बढ़ेगा !

महादानव तुम्हारा क्षय हो।


महासागर,तुम्हारी जय हो।

तुम्हारी प्रलयंकारी राष्ट्रीयता

बाढ़ की भांति

कितना बढ़ेगा!

‘धृतराष्ट्र’ तुम्हारा क्षय हो।


महमनीषी,तुम्हारी जय हो।

तुम्हारी आध्यात्मिक लोलुपताएँ,

सुरासुर संग्राम की तरह

कितना बढ़ेगा!

महामूरख,तुम्हारा क्षय हो।


महात्मा, तुम्हारी जय हो।

तुम्हारी दैहिक भौतिकता

चरवाक के व्याख्या की तरह

कितना फैलेगा!

महाभूत तुम्हारा क्षय हो।


महावीर तुम्हारी जय हो।

तुम्हारी सामरिक रक्त-पिपासा

आयुधों के आविष्कार की तरह

कितना बढ़ेगा!

महापिपासु, तुम्हारा क्षय हो।


महाराज, तुम्हारी जय हो।

तुम्हारी प्राणान्तक यातना

यातना-यंत्रों की कठोरता की तरह

कितना बढ़ेगा!

महापीड़क,तुम्हारा क्षय हो।


महाशक्ति, तुम्हारी जय हो।

तुम्हारी तकनीकी जटिलताएँ

आर्थिक साम्राज्यवाद की तरह

कितना बढ़ेगा !

महाजटिल, तुम्हारा क्षय हो।


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