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Arun Kumar Prasad

Abstract

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Arun Kumar Prasad

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बहादुर औरतें

बहादुर औरतें

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ये औरते हैं बहादुर औरतें ?

तिलक लगाकर पुरुषों को युद्ध में भेजती औरतें।

शौर्य को यूँ मर-कट जाने को ललकारती औरतें। 

हार कर अपमान से बचने जौहर करती औरतें।

सौंदर्य पर गर्वित होकर स्वयंवर रचाती औरतें।


सत्ता और ऐश्वर्य पर समर्पित होती लुटती औरतें।

शौर्य और सम्पत्ति पर ही मोहित होती औरतें।

अपने स्वतंत्र अस्तित्व की राजनैतिक घोषणा करती औरतें।

अपने द्विजत्व संस्कार को श्रेष्ठ दिखाती औरतें।


रूप, रंग, गंध की मोहक स्त्रेण प्रदर्शन करती औरतें।

सार्वजनिक, अर्धनग्न, अश्लील संकेत करती औरतें।

हत्यारे पिता, पुत्र, भ्राता, साथी की वकालती औरतें।

हर भ्रष्ट-अर्जन में बराबर की हक जताती औरतें। 


या, ये हैं बहादुर औरतें !

तमाम जिंदगी, जिन्दगी के लिए जूझती औरतें।

हर रक्त-पात से पिता, पुत्र, भाई को रोकती औरतें।

संघर्षों में साथी के कंधे से कंधे जोड़ती औरतें।

भूख रोककर अपनी, बच्चों की बुझाती औरतें।


अन्नपूर्णा हो इस हेतु बीज, बिचड़े रोपती औरतें। 

खेत खोदती, जल सींचती, फसल जोहती औरतें।

अपमान पर जौहर नहीं उसे ललकारती औरतें।

ताल ठोंकती और लड़कर शत्रु को हराती औरतें।


धूल, माटी, पसीने की सुगंध से महकती औरतें।

सौष्ठव देह से दैहिक सौंदर्य सँवारती औरतें।

जिन्दगी को खुली किताब सा पढ़ती औरतें।

बच्चों को खुली किताब सा जीवन पढ़ाती औरतें।


ईश्वर को महसूस करने को उन्हें पूजती औरतें। 

अनिश्चितता भरे कल को प्राण-पन से जीती औरतें।

हाड़-मांस से बनी दुबली-पतली पर, कठोर औरतें।


वैवाहिक-संकल्प को उम्र भर अविचलित जीती औरतें।

पेट भर भोजन, तन भर वस्त्र ही सुख मानती औरतें।

सारे दुर्भाग्य अपने सिर पर ढोने को बाध्य औरतें।

कल जीने के लिए कैसी-कैसी मौतें मरती औरतें।


सारे देवताओं को अन्तर्मन से माफ करती औरतें।

सारे दु:खों, व्यथाओं, त्रास के श्मशान झेलती औरतें।


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