कविता- चलो आज कुछ कह लेती हूँ ।
कविता- चलो आज कुछ कह लेती हूँ ।
मैं भी अपने अंतर्मन से
कुछ बातें चुन लेती हूँ
चलो आज कुछ कह लेती हूँ ।
मैं वही हूँ जिस मिट्टी ने
नूतन आकार लिया है
मैं वही हूँ जिसके अपनों ने
सहर्ष स्वीकार किया है
मैं अपने अंतस की गर्मी को
आज हवा देती हूँ
चलो आज कुछ कह लेती हूँ ।
तोड़ने आए थे एक रोज मुझे
जिन्हें दोस्त मैं कहती थी
आगे बढ़ गई हूँ आज मैं
उन्हें छोड़ देती हूँ
चलो आज कुछ कह लेती हूँ।
एक साथी मिला था सरे राह मुझे
जिसे हमराही अपना बना लिया
उम्मीदों का एक घड़ा अब
रोज ही भर लेती हूँ
चलो आज कुछ कह लेती हूँ ।
एक वह है जिसने जन्म दिया
एक वह है जिसने समझ लिया
दोनों के एहसान तले
मैं खुद को रख लेती हूँ
चलो आज कुछ कह लेती हूँ ।
मौन रहूँ मैं जब कभी
अर्थ नहीं मैं निशब्द हूँ
ताने-बाने जीवन के मैं
चुप रहकर भी बुन लेती हूँ
चलो आज कुछ कह लेती हूँ ।
समझ नहीं सकोगे तुम
उतने किस्से हैं जीवन के
कुछ तोड़े कुछ जोड़े
ना जाने कितने हिस्सों से
जो हुआ अच्छा हुआ
इसे सोच रह लेती हूँ
चलो आज कुछ कह लेती हूँ ।
